ई-कचरा (E-Waste) यानी ऐसा इलेक्ट्रॉनिक कचरा जो अब उपयोग के लायक नहीं रहा—जैसे पुराने मोबाइल फोन, लैपटॉप, टेलीविजन, चार्जर, बैटरी, मॉनिटर आदि। तकनीकी प्रगति ने हमारे जीवन को आसान बनाया है, लेकिन इसके साथ-साथ ई-कचरे की समस्या भी तेजी से बढ़ रही है। स्मार्टफोन से लेकर रेफ्रिजरेटर तक, आज हर घर इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से भरा पड़ा है। जैसे-जैसे इन उपकरणों का जीवनकाल घटता जा रहा है, वैसे-वैसे ई-कचरे का अंबार लगता जा रहा है।
भारत, जो विश्व के सबसे बड़े और तेजी से बढ़ते उपभोक्ता बाजारों में से एक है, अब दुनिया के टॉप ई-कचरा उत्पादक देशों में शामिल हो चुका है।

🇮🇳 भारत में ई-कचरा: आंकड़े और वास्तविकता
- हर साल भारत में 30 लाख टन से अधिक ई-कचरा उत्पन्न होता है।
- 2023-24 में ई-वेस्ट मैनेजमेंट सेक्टर ने ₹10,000 करोड़ का आँकड़ा पार किया।
- इसमें सबसे अधिक हिस्सा आईटी डिवाइसेस, घरेलू उपकरण और मोबाइल गैजेट्स का होता है।
⚠️ पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए खतरा
ई-कचरे में मौजूद सीसा, पारा, कैडमियम, और अन्य विषैले तत्व मिट्टी, पानी और हवा को गंभीर रूप से प्रदूषित कर सकते हैं। अनौपचारिक क्षेत्र में किए जाने वाले असुरक्षित प्रोसेसिंग जैसे एसिड लीचिंग और ओपन बर्निंग से न केवल पर्यावरण को बल्कि मानव स्वास्थ्य को भी भारी खतरा होता है।
🧩 E-Waste क्या होता है?
“E-Waste” वो इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद होते हैं जिन्हें फेंक दिया गया हो या जो अब काम नहीं करते — जैसे मोबाइल, लैपटॉप, टीवी, चार्जर, आदि।
इनका सही से डिस्पोज़ल न होने पर ये साइलेंट पॉल्यूशन का कारण बनते हैं।
📈 ई-वेस्ट से जुड़ा बिजनेस: सुनहरा अवसर
भारत में ई-कचरा प्रबंधन एक बढ़ता हुआ उद्योग है, जो न केवल पर्यावरण की सुरक्षा करता है बल्कि बड़ा मुनाफा भी दे सकता है।
💼 बिजनेस कैसे शुरू करें?
- मार्केट रिसर्च:
अपने क्षेत्र में ई-वेस्ट जनरेशन और कंपनियों की पहचान करें। - लाइसेंसिंग:
- CPCB (Central Pollution Control Board) से रजिस्ट्रेशन लें।
- Pollution NOC और स्थानीय प्राधिकरण की अनुमति भी ज़रूरी हो सकती है।
- वर्कशॉप सेटअप:
- 200–300 sq ft की जगह से शुरुआत कर सकते हैं।
- जरूरी टूल्स: Screwdrivers, Wire cutters, Gloves, Sorting bins आदि।
- Raw Material सोर्स:
लोकल कबाड़ी, OLX/Quikr पर सेकंड हैंड इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज, कंपनी डीलर्स।
💸 अनुमानित लागत और मुनाफा
आइटम | अनुमानित खर्चा |
---|---|
Setup + Tools | ₹40,000 – ₹60,000 |
लाइसेंस व दस्तावेज | ₹10,000 – ₹15,000 |
Raw Material | ₹10,000 (स्टार्टअप) |
Total लागत | ₹70,000 – ₹90,000 |
मासिक मुनाफा | ₹25,000 – ₹80,000 तक |
🎯 टारगेट कस्टमर्स
- मोबाइल रिपेयर सेंटर
- इलेक्ट्रॉनिक दुकानदार
- रीसाइक्लिंग कंपनियाँ
- ऑनलाइन बायर्स
🔍 प्रमुख चुनौतियाँ
- असंगठित संग्रह तंत्र
- अवैज्ञानिक प्रोसेसिंग मेथड
- जागरूकता की कमी
- तकनीकी और वित्तीय संसाधनों की कमी
🌱 ई-कचरा प्रबंधन में संभावनाएँ
- 💼 रोजगार के अवसर
- 💰 कीमती धातुओं की रिकवरी (सोना, चांदी, तांबा)
- 🌍 पर्यावरण संरक्षण
- 🏭 चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा
- 🧠 तकनीकी नवाचार के नए द्वार
✅ समाधान और आगे की राह
- औपचारिक संग्रह केंद्रों की स्थापना
- उन्नत तकनीक का उपयोग
- जन-जागरूकता अभियान
- सरकार द्वारा वित्तीय प्रोत्साहन
- सरकार-निजी भागीदारी का मॉडल
🔚 निष्कर्ष:
ई-कचरा प्रबंधन केवल एक पर्यावरणीय आवश्यकता नहीं है, यह भारत की अर्थव्यवस्था, रोजगार और स्थिरता का भविष्य भी है। सरकार के प्रयासों, उद्योग की भागीदारी और जनजागरूकता के साथ मिलकर हम इस चुनौती को अवसर में बदल सकते हैं।
“अब समय आ गया है कि हम कचरे को ‘बोझ’ नहीं, बल्कि ‘संसाधन’ समझें।”